मुझे एक एसएमएस मिला । लिखा था –सभी को चेंज चाहिए, लेकिन कोई इसे लेकर नहीं आता ........ । कुछ अंतराल के बाद लिखा था - .... ये महान शब्द है ..... एक बस कंडक्टर के । लेकिन बात मजाक की नहीं है । वास्तव में हम सभी को चेंज चाहिए, परिवर्तन चाहिए ।
इसलिएभारत समेत दुनिया के 192 देशों ने वर्ष 2000 में संयुक्त राष्ट्र में वादा किया था कि वे 2015 तक 8 लक्ष्यों –भुखमरी और गरीबी को खत्म करना, सभी बच्चों को प्राइमरी शिक्षा उपलब्ध करवाना, महिला सशक्तिकरण और लिंग समानता को बढ़ावा देना, बाल मृत्यु दर, मातृत्व मृत्यु दर को काबू मे लाना, एचआईवी, मलेरिया जैसी बीमारियों से लड़ना, पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्य करना और विकास के लिए एक विश्वव्यापी साझेदारी तैयार करना –को हासिल कर लेंगें । इन्हें संयुक्त राष्ट्र संघ ने मिलेनियम डवेलपमैंट गोल (एमजीडी) या विकास लक्ष्य नाम दिया है । निस्:सन्देह यदि इन लक्ष्यों को हासिल किया जाता है तो देश में व्यापक परिवर्तन दिखाई देगा ।
लेकिन समस्या वही बस कंडक्टर वाली है कि इस परिवर्तन को लाएगा कौन ? बहुत सोचने विचारनें के बाद मुझे ख्याल आया कि हमारे देश में इस तरह का परिवर्तन दो ही वर्ग ला सकते हैं और वे हैं हमारे मंत्री-नुमा नेता और वरिष्ठ नौकरशाह । क्योंकि देश का सारा काम भले ही राष्ट्रपति के नाम से होता हो, क्या होना है व कैसे होना है ये सिर्फ और सिर्फ हमारे मंत्री-नुमा नेता और वरिष्ठ नौकरशाह ही निर्धारित करते हैं । इसलिए मेरे सौभाग्य या दुर्भाग्य से मैं ऐसे ही एक मंत्री-नुमा नेता और वरिष्ठ नौकरशाह से एक साथ मिला और पूछ बैठा –एमजीडी हासिल करने के लिए अब तो केवल पांच वर्ष ही बचे हैं और दस वर्ष बीत चुके हैं । क्या आप बताएंगें की हमारे देश की इस मामलें में क्या स्थिति हैं और क्या हम लक्ष्य पा लेंगें ?
दोनों ने एक-दूसरें के चेहरे की और देखा फिर मंत्री-नुमा नेता बोले देखिए हम जो भी कहेंगें वह हम दोनों का सम्मिलित जवाब है आप किसी एक का नाम ना लिखिएगा । क्योंकि देश की नैया को डुबोने व पार लगानें में हम साझेदार हैं । मैंनें हॉं में सिर हिला दिया । उन्होंनें जो कहा वह अक्षरश: एक साथ आपके सम्मुख है - आपकों पता ही है संयुक्त राष्ट्र हमें जगाने के लिए 'स्टेंड अप, टेक एक्शन, मेक नाइज' इवेंटस के अंतर्गत यूएन मिलेनियम कैंपेन के कार्यक्रम हमारे देश में कर रहा है । एक कार्यक्रम पुराने किले में कर चुका है । देश के कई हिस्सों में कार्यक्रम किए जा रहे हैं । हमनें भी कमर कस ली है । देख रहे हैं कि युएन कितनी राशि देता है व उसमें से कितनी राशि 'हमारी' भुखमरी और गरीबी मिटा सकती है । बच्चों को प्राइमरी तक क्या हमनें तो पूरी स्कूली शिक्षा के प्रबंध कर दिए हैं । कोई बच्चा अब फेल नहीं किया जा सकता । हो सका तो बच्चों को घर बैठे ही स्कूली शिक्षा पा लेने के प्रमाणपत्र दे दिए जाएंगें । चाइनीज सीख कर बच्चें चीं-चीं चाओं करेंगें तो विश्व को हमारी प्रगति का पता चलेगा भले ही वे ढंग से हिन्दी लिख-बोल ना पाएं । महिलाओं को सशक्त बनानें के लिए और लिंग समानता को बढ़ावा देने के लिए हम लिंग जांच अनिवार्य करने जा रहे हैं जब तक की स्त्री-पुरूष की संख्या बराबर न हो जाए । भले ही महिला आरक्षण ना कर पा रहे हों । बाल मृत्यु दर, मातृत्व मृत्यु दर को काबू मे लाने के लिए आंकड़ों की दोबारा जांच की जा रही है । हो सकता है उनमें त्रुटि हो । आप देखेंगें कि ये दर शीघ्र काबु में आ जाएंगी । एचआईवी, मलेरिया जैसी बीमारियों से लड़नें के लिए हम अमेरिका, युरोप व पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों से पर्यटकों व मच्छरों के आवागमन पर पाबंदी लगा देंगें । पर्यावरण संरक्षण के लिए हम प्रत्येक घर में जापानी बोनसाई पद्धति से जंगल या पेड़-पौधे लगाना अनिवार्य बनानें संबंधी कानून ला रहे हैं और विकास के लिए एक विश्वव्यापी साझेदारी का कार्य तो यूएन के सहयोग के बिना हो ही नहीं सकता । फिर भी हमें विश्वास है कि हम 2015 तक एमजीडी को पानें के लिए तैयार हैं ।
यह जानकार मुझे भी लगा कि शायद संयुक्त राष्ट्र के 'स्टेंड अप, टेक एक्शन, मेक नाइज' इवेंटस के अंतर्गत यूएन मिलेनियम कैंपेन के कार्यक्रमों से हमारी नींद खुल चुकी है और हम परिवर्तन ले ही आएंगें । तभी तो यूएन भी शोर मचानें के लिए संगीत के कार्यक्रम आयोजित कर रहा है ।
- अरविन्द पारीक
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