हाल ही में माननीय सांसद श्री वैश्य ने संसद में हिन्दी में पूछे गए प्रश्न का अंग्रेजी में जबाव दिए जाने की बात का पुरजोर विरोध किया था. लेकिन एक-आध खबरिया चैनल व समाचार-पत्रों को छोड़ कर किसी भी खबरिया चैनल या समाचारपत्र में इस खबर की दो पंक्तियां भी सुननें या पढ़नें को नहीं मिली. लेकिन टवीटर पर कौन वीआईपी अंग्रेजी में कैसे चहचहाया इसे लगभग सभी चैनल व समाचारपत्र दिखा रहे हैं. भले ही वे हिन्दी की रोटी खा रहे हों.
खैर इस बारे में और बात करने से पहले, आप यदि हिन्दी भाषा से परिचित हैं व देश में इसका विकास चाहते हैं तो ना जाने कितनी बार आपने संविधान के अनुच्छेद 343 का अध्ययन किया होगा जो बताता है कि भारत संघ की राजभाषा हिन्दी व लिपि देवनागरी होगी तथा भारतीय अंकों के अंतर्राष्ट्रीय रूप का प्रयोग किया जाएगा. आपने यह भी पढ़ा होगा कि संविधान के प्रारंभ से पन्द्रह वर्ष की अवधि तक जिन कार्यो के लिए ऐसे प्रारंभ से पहले अंग्रेजी का प्रयोग किया जाता रहा है उन सभी कार्यो के लिए अंग्रेजी का प्रयोग किया जाता रहेगा.
मैंनें सोचा चलिए उन सभी कार्यो की जानकारी जुटाते हैं कि ऐसे प्रारंभ से पहले अंग्रेजी का किन-किन कार्यो के लिए प्रयोग किया जाता रहा है. पहले तो नेट को ही खंगाल डाला. बहुत सी नई बातें पता चली लेकिन वह सूची कहीं नहीं मिली जिनमें उन कार्यो का जिक्र हो जो संविधान लागू होने से पहले अंग्रेजी में किए जाते थे या जिनमें अन्य किसी भारतीय भाषा का प्रयोग किया जाता था. फिर कुछेक बुजूर्ग विद्वानों से जानकारी चाही कि क्या उनकी जानकारी में ऐसी कोई सूची थी. लेकिन यहां भी निराश होना पड़ा. अलबत्ता इतना अवश्य हुआ कि वे अपनी याददाश्त के बल पर व माता-पिता से सुनें वे कार्य गिनानें लगें जो ऊर्दू या फारसी में किए जाते थे. पुस्तकॉलय आदि की खाक छानने पर कुछेक कार्यो की भाषा का उल्लेख तो अवश्य कई स्थानों पर पढ़ा. लेकिन मैं वह सूची नहीं खोज पाया जिसमें यह उल्लेख मिले कि उन सभी कार्यो में कौन-कौन से कार्य आते थे.
अत: मैं समझ गया कि ऐसी कोई सूची बनाई ही नहीं गई थी. अर्थात संविधान में पंद्रह वर्ष की जो शर्त रख कर/लगा कर हिन्दी को विकलांग बनाया गया था उसके साथ-साथ बैशाखियां भी हटा दी गई थी और फिर इसी अनुच्छेद के खंड-3 में पंद्रह वर्ष बाद भी कानुन बना कर अंग्रेजी के प्रयोग को सुनिश्चित करने का अवसर देकर हिन्दी भाषा की राजभाषा के रूप में स्थाई विकलांगता का बंदोबस्त भी कर दिया गया था.
इसी खोज के दौरान संविधान के अनुच्छेद 120 तथा 210 पर नजर गई. तो देखा कि इन अनुच्छेदों में क्रमश: संसद में प्रयोग की जाने वाली भाषा तथा विधान-मंडल में प्रयोग की जाने वाली भाषा का उल्लेख है - भाग 17 में किसी बात के होते हुए भी, किंतु अनुच्छेद 348 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, संसद (अनुच्छेद 210 में यहां विधान-मंडल शब्द है) में कार्य हिंदी में या अंग्रेजी में किया जाएगा. दोनों ही अनुच्छेदों के खंड (2) कहते हैं कि जब तक संसद (अनुच्छेद 210 में यहां विधान-मंडल शब्द है) विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक इस संविधान के प्रारंभ से पंद्रह वर्ष की अवधि की समाप्ति के पश्चात् यह अनुच्छेद ऐसे प्रभावी होगा मानो "या अंग्रेजी में" शब्दों का उसमें से लोप कर दिया गया हो.
एक आस बंधी की शायद ऐसे उपबंध न किए गए हों और "या अंग्रेजी में" शब्दों का उसमें से लोप हो गया हो व संसद और विधान मंडलों की भाषा सिर्फ हिन्दी या राज्य की राजभाषाएं ही रह गई हों. लेकिन यहां भी निराशा ही हाथ लगी. हमारे देश में किसी भी आवश्यक विधि के निर्माण में देरी हो सकती हैं लेकिन राजभाषा की स्थाई विकलांगता के लिए विधि निर्माण में कभी भी देरी नहीं हुई.
यहां संविधान का उल्लेख करने का कारण है हमारी मानसिकता के बारे में बताना. हम कितने विद्वान थें कि संविधान के निर्माण के समय ही भविष्य के दर्शन कर लिए थे. हमें पता था कि भविष्य केवल अंग्रेजी का है, हिन्दी का नही. इसलिए हमनें संविधान में ऐसे प्रावधान किए.
अब प्रारंभ में उल्लिखित समाचार के बारें में लिखनें का कारण, वह यह है कि 14 सिंतबर का दिन फिर आ गया हैं. जिसे हम और आप हिन्दी दिवस के रूप में जानते हैं. लेकिन हमें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि हिन्दी के बारे में नियमों की अवहेलना कौन कर रहा है ? यदि किसी सरकारी कार्यालय में राजभाषा हिन्दी के नियमों की अनदेखी हो रही है तो फिर यह खबर कैसे हो सकती है ? खबर तो केवल ऐसी सनसनी बन सकती है जो बिक सके. या फिर हमारे अंग्रेजीदां संवाददाताओं को लुभा सके. यह खबर कैसे हो सकती है कि हिन्दी दिवस फिर आ गया है लेकिन राजभाषा नियमों की अवहेलना हो रही है व राजभाषा के रूप में हिन्दी आज भी सक्षम क्यों नहीं बन पा रही है ? कारण केवल इतना है कि राजभाषा अधिनियम व नियमों की अवहेलना के लिए दंड का प्रावधान ही नहीं है. इसलिए हिन्दी पर खबर कैसे हो सकती है ?
- अरविन्द पारीक
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